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राजा विजय सिंह स्मारक का इतिहास

Updated: Aug 6, 2024

भारत की स्वाधीनता की खातिर सर्वस्व न्यौछावर करने वाला ग्राम कुंजा वर्तमान उत्तराखंड के जनपद हरिद्वार की रूडकी तहसील में स्थित है... सन् 1819 ई. में लंढौरा राज्य के गुर्जर राजा रामदयाल सिंह जिनकी रियासत में 1200 गांव थे, इसी वंश का एक तालुक्का (रियासत) कुंजा बहादरपुर था, जिसका राजा विजय सिंह बना... राजा विजय सिंह ने धीरे धीरे अपनी शक्ति को बढाया और संगठित करना शुरू कर दिया, कहना शुरू कर दिया कि अंग्रेज कौन है, हमारी जमीन और जागीर को सीमित करने वाले... जबतक हमारे बाजुओं में दम है हम अपनी जमीन को कम नहीं होने देंगे... राजा विजय सिंह और उनके प्रमुख साथी कल्याण सिंह (कलुआ) गुर्जर ने फरमान जारी कर दिया...

1. फिरंगियो को देश से बाहर निकाल दो

2. माल गुजारी (भूराजस्व) देना बंद कर दो

3. ब्रिटिशों के समस्त राजचिन्हो को मिटा दो

4. तहसील खजानो को हस्तगत करलो

5. पराधीनता का जुआं उतार फेंको

6. क्रान्तिकारी कैदियों को जेल से मुक्त करा दो

इन सबका व्यापक असर हुआ, इस प्रकार प्रथम स्वाधीनता का बिगुल बज गया ...

1अक्टूबर सन् 1824 ई. को आधुनिक हथियारों से लैस 200 पुलिस गार्ड्स, तहसीलदार व थानेदार की सुरक्षा में एक बहुत बडा खजाना ज्वालापुर कोषागार से सहारनपुर कोषागार में भेजा जा रहा था जिसे राजा विजय सिंह व सेनापति कल्याण सिंह गुर्जर के नेतृत्व में विद्रोहीयो ने भगवानपुर से पूर्व की ओर ग्राम कलालहटी के पास लूट लिया गया तथा लूटी गई धनराशि से एक हजार जवानों की भर्ती कर ली गई... 3अक्टूबर सन् 1824 ई. को गोरखा पलटन ने राजा विजय सिंह के गढी (किले) पर हमला कर दिया... दिन रात लडाई चलती रही... आखिरकार पहले कल्याण सिंह और बाद में राजा विजय सिंह वीरगति को प्राप्त हुये... साथ ही 152 विद्रोही शहीद हुए... और 41 गिरफ्तार कर लिए गये जिन्हें सुनहरा ग्राम के वटवृक्ष पर फांसी दे दी गई... सेनापति कल्याण सिंह के सिर को काट कर देहरादून जेल के मुख्य द्वार पर लटका दिया गया... और कुंजा गांव को आग के हवाले कर दिया गया... राजा विजय सिंह व कल्याण सिंह ने स्वाधीनता की ज्योति अपने रक्त का बलिदान देकर प्रज्जवलित की थी... सन् 1857 से 33 वर्ष पूर्व वही ज्वालामुखी बन कर विस्फोट कर गई, जिसमें अंग्रेजी हुकुमत का गरूर जलकर राख हो गया था... ऐसी पावन धरा के दर्शन करके आज जीवन धन्य हो गया... अमर शहीदों को शत् शत् नमन ll

देहरादून में शोर साहब का ऐतिहासिक कुंआ सन् 1822

( गुर्जर राजा कल्याण सिंह कलुवा के सन्दर्भ में विशेष)

कई साल बाद देहरादून के पहले मजिस्ट्रेट F J Shor(1799-1837) द्वारा अगस्त 1822 में देहरादून कलक्ट्रेट परिसर में जनहित में बनाये गये एक विशाल कुंये को फिर से देखने गया था,

देहरादून नगर की ऐतिहासिक अमानत 'शोर साहब का कुआं' अब चारों ओर सरकारी भवन निर्माण से पट गया है, बडी मुश्किल से मैं कुंवे तक पहुंचा, कुंवे पर कोई नाम पट्टिका नहीं है, जिससे हम दून के पहले अंग्रेज मजिस्ट्रेट शोर साहब की इस स्वर्णिम अमानत का इतिहास जान सकें,

1822 में देहरादून कचहरी परिसर में 228 फीट गहरा कुंआ मजिस्ट्रेट एफ जे शोर ने 1138 रूपये 10 आना की लागत से बनवाया था, कुछ रिकार्ड्स में यह रकम 11000 रूपये बतायी गयी है, जो गलत है, मेरे पास उपलब्ध "शोर का पत्र सैकेट्री,कंपनी गर्वनमेंट, फोर्ट बिलियम(लेटर बुक नं 5, सन 1824) में इस कुंवे की लागत



(1138 रू 10 आना) बतायी गयी है,

फ्रेडरिक जान शोर साहब मसूरी और देहरादून शहरों के संस्थापकों में एक हैं, देहरादून में 1822-25 में आधुनिक देहरादून की नींव रखने वाले शोर साहब ही थे, वर्तमान कलक्ट्रेट, तहसील व सरकारी भवन, सडके, जेल, अस्पताल, स्कूल पहले पहल शोर साहब ने ही बनवाये थे,

अक्टूबर 1822 में मसूरी में वर्तमान गनहिल में पत्थर का ऊंट खोजने वाले एफ जे शोर ही थे, कैप्टन यंग के साथ 1823 में पहला भवन(आखेट घर) बनाने वाले मजिस्ट्रेट एफ जे शोर ही थे, 1823 में मसूरी का पहला हाईवे(राजपुर-मसूरी मार्ग)शोर साहब ने ही बनवाया था,

शोर साहब कुल 38 साल जिंदा रहे, 1824 में रूडकी के पास कुंजाह किले पर गुर्जर सरदार कलवा(राजा कल्याण सिंह) से हुए युद्ध में एफ जे शोर बुरी तरह घायल हो गये, कैप्टन यंग ने उनकी जान बचायी थी,

पिछले 30 सालों में 1824 के कुंजाह युद्ध व गुर्जर नेता कलुवा पर अनेकों लेख हैं और इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर चर्चित कहानी " ऐनी ब्रोनेट' कोई 15 साल पहले कुछ चर्चित मेग्जीनों में छपी थी, कलुवा गिरफ्तार कर देहरादून लाया गया था, जहां 1824 में उसे परेड ग्राउंड के पास एक पेड पर सरेआम फांसी पर लटका दिया गया,

घायल होने के लगभग 13 साल तक एफ जे शोर जीवित रहे और कुल 38 साल की अल्पायु में 29 मई 1837 में उनकी मृत्यु इसी घाव के कारण कलकत्ता में हुई, वहीं नार्थ पार्क स्ट्रीट कब्रिस्तान में उन्हे दफनाया गया, शोर साहब विश्व ख्याति के पक्षी विशेषज्ञ थे और भारत की कृषि व ग्रामीण कुटीर उधोग पर भारतीयों के अधिकारों के पक्षधर थे ll

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